Himalaya

Himalaya
Himalaya-(from Devalgarh)

Sunday, January 16, 2011

प्रकृति जहां बोलती है ( उत्तराखण्ड़)











सुबह की सुंदर लालिमा,
संवर्द्धन करती नव चेतन का ।
खग-मृग के सुंदर कलरव से
विस्मृत होता धुंध तिमिर का।
अलसाई सी कोमल नदियां,
बहती है निर्विध्न भाव से।
पत्तों के सुंदर झुरमुट से,
झाँका आज यहाँ फिर किसने।
पवन शीत है उष्ण वेग है,
धरा उदित मदमाती सी।
कंचन किसने आज बिखेरा।
हुई सृष्टि आल्हादित सी।
अंतरमन में जाने कितने,
भाव उमड़ पड़ते हैं आज।
आज हृदय की क्या बिसात है,
हारा सकल भूखण्ड विशाल।